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कविता

व्यावहारिक परिचय ।। 1 ।।

मुंशी रहमान खान


दोहा

निशि दिन पलियो धर्म तुम पाप से रहियो दूर।
हिंसा चोरी झूठ छल कर्ज सबन से क्रूर।। 1
कर्ज भार नहिं लादियो जब तक तोर बसाय।
सब सुख नाशै कर्ज रिपु बिना दिए दुखदाय।। 2
दान पुन्‍य जप तप किए महा पाप कट जाय।
कर्ज पाप नहिं कट सकै बिन दिए हरियाय।। 3
जो जन कर्जा लेय कर नहीं देय मरजाँय।
दान पुन्‍य सब निफल हों नहीं स्‍वर्ग वे पाँय।। 4
चाहहुँ सुख दुहुँ लोक महं कर्जा देहु चुकाय।
तजहुँ जुआ मद बहु खरच तो धन सुख अधिकाय।। 5
झूठ नशावै शक्ति सब झूठ पाप का मूल।
सत्‍वादी के सामने झूठ उडै़ जस तूल।। 6
नहिं सत्‍वादी पुरुष वे छल उर धर बतलाँय।
ईश धरम को छोड़ कर पाप न करत अघाँय।। 7
चार दिवस तक चल सकै झूठ कपट व्‍यवहार।
जस तृण छाई झोपड़ी बिनशत लगै न बार।। 8
मीठे बचन सुना वहीं अपने हितहिं बनायँ
व्‍याधा हरिन फंसा वहीं मीठी बेनु बजाय।। 9
नहिं पालन कबहूँ करें जो मुख भाषें बैन।
तजियो ऐसे छलिन को तौ पावहु सुख चैन।। 10
तुम्‍हरे हित मुख से कहें भरे कपट हिय पूर।
ऐसे कूर मयूर से रहियो कोसों दूर।। 11
सत व्रत संयम शील मख क्षमा दया तप दान।
इन बिनु द्विज है शूद्र सम विचरें भू बिनु मान।। 12
दुर्जन का संसर्ग तज कर सज्‍जन से नेह।
रहमान मान्‍य होवै जगत सुख धन बरसै गेह।। 13

 


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